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जानकारी : बाल शोषण रोकने के महत्वपूर्ण उपाय एवं सावधानियां



आज पूरा देश बच्चों के खिलाफ बढ रहे बाल शोषण के मामले से परेशान और चिंतित है, प्रतिदिन देश के किसी न किसी राज्य से ऐसी खबरें सुनाई देती है. किसी माता-पिता या उनके बच्चे को पता ही नहीं होता कि वो कब और कैसे किसी के हवस का शिकार बन जाते हैं। हाल ही में हरियाणा के गुरूग्राम (गुड़गांव) के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में एक 7 वर्षीय बालक के साथ तथाकथित शोषण का मामला प्रकाश में आया है जिसमें मासूम बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। देश का बहुचर्चित बाल शोषण कांड दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी गांव में साल 2006 में हुआ था. इस मामले के  दोनों आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके घरेलू नौकर सुरिंदर कोली को सीबीआई की एक विशेष अदालत ने  फांसी की सज़ा सुनाई थी हालांकि बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसे उम्र कैद में तब्दील कर दिया था।


एक इंसान कैसे और क्यों बन जाता है हैवान 

बाल शोषण करने वाले व्यक्ति पेडोफिलिया नामक बीमारी से पीड़ित होते है क्योंकि जो लोग बच्चों का शोषण करते हैं सामान्य रूप से वे मांसिक विकार से ग्रसित होते हैं, आम बोलचाल में पेडोफिलिया का मतलब होता है किसी भी बच्चे के प्रति यौन इच्छुक होना या किसी भी बच्चे के साथ यौन दुर्व्यवहार करना, इसे अक्सर 'पेडोफिलिक व्यवहार' भी कहा जाता है, आमतौर पर पेडोफिलिया से 16 साल की आयु के किशोर अथवा इससे ऊपर के लोग ही इसकी चपेट में आते हैं, इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति अपनी हवस मिटाने के लिए नाबालिगों के साथ शोषण करता हैं जिसमें उसे आनंद आता है।
डाइगनोस्टिक एंड स्टेटिसटिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर्स (DSM) के मुताबिक पेडोफिलिया एक पैराफिलिया है जिसमें एक व्यक्ति छोटे बच्चों की ओर भावुक और बार-बार यौन आग्रह की दिशा में कल्पनाशील हो जाता है और जिसके बाद वह या तो हकीकत में इसे पूरा करता है या पूरा करने की कोशिश करता है यही वजह उसकेे लिए मुसीबत का कारण बन जाती है है। अभी तक देश में पेडोफिलिया की रोकथाम के लिए किसी भी तरीके के इलाज को विकसित नहीं किया गया है। हालांकि इसके लिए कुछ विशेष चिकित्सा जरुर है जो कि इंसान में बच्चों के साथ यौन शोषण करने की भावना को कम कर सकता है।


बाल शोषण रोकने महत्वपूर्ण उपाय 

एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 50 फीसदी बच्चे अपनी जान पहचान के लोगों एवं रिश्तेदारों द्वारा चाइल्ड एब्यूज का शिकार होते हैं। बाल शोषण रोकने के लिए सबसे पहले बच्चों के लिए सुरक्षा घेरा अभिभावक खुद तैयार कर सकते हैं। कभी भी 3 से 5 साल तक के बच्चों को अकेला बिलकुल न छोडें, घर से बाहर जाते समय यदि संभव हो सके तो बच्चों को भी अपने साथ लेकर जायें या परिवार के विश्वसनीय सदस्यों के पास ही रखें।
अपने घर पर जाने वाले सभी परिचितों और रिश्तेदारों पर भी नजर बनाए रखें, कभी भी किसी पर आँख मूंदकर भरोसा न करें. आपके घर पर आने वाले लोग गलत स्वभाव के न हों, कोई व्यक्ति नशा करने वाले न हो चाहे वो आपके कितने भी करीबी रिश्तेदार ही क्यों न हों, हमेशा बच्चों को ऐसे लोगों से उचित दूरी पर रखें।

अपने बच्चे को यौन शोषण के बारे में भी समझाये ताकि आपका बच्चा हर तरह से महफूज़ रह सके, बच्चों को उनके शरीर की संरचना के बारे में जागरूक करें, उन्हें  शरीर के प्राइवेट पार्ट्स के बारे में जानकारी दें, तथा उन्हें यह भी बतायें कि कोई भी अपरिचित व्यक्ति जो उनके चेहरे और हाथों के अलावा शरीर के किसी अन्य भाग को छूने की कोशिश करता है तो ये गलत है। उन्हें इसकी सीमा के बारे में बताएं. ताकि यदि कोई शरीर के उस भाग को छूना चाहे तो वे समझ जाएं कि ये सही नहीं है. और तुरंत वहां से भाग जाएँ और आपको बताएं।

अभिभावक इस विषय के संबंध में खुद उनसे बात करें और इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को शर्मिंदगी बिल्कुल महसूस न हो. यदि आप  खुद बात करने में हिचकिचाहट महसूस कर रहे हैं तो आप किसी प्रोफेशनल काउंसलर की सहायता ले सकते है। अपने बच्चों के साथ सदैव दोस्ताना रिश्ता बनाकर रखना चाहिए, ताकि वो आपसे बात करने में डरे नहीं जिससे उन्हें कोई भी परेशानी हो तो निःसन्देह आपको बता सकें।

ज़्यादातर मां-बाप बच्चों को स्कूल पहुंचाकर निश्चिन्त हो जाते हैं, काम धंधे की वजह से ये जानने की कभी फुरसत नहीं मिलती कि उनका बच्चा स्कूल में किस स्थिति में है, स्कूल में उसका अध्यापक एवं अन्य बच्चों के साथ कैसा व्यवहार है वह कभी जानने की कोशिश नहीं करते, जोकि बिल्कुल गलत है, ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए।

हमेशा स्कूल और अध्यापक के संपर्क में बने रहें। हर दिन स्कूल से आने के बाद वहाँ के बारे में बच्चों से बातें करें, अपने बच्चे के साथ अन्य पढ़ने वाले दोस्तों और उनके माता-पिता से भी संपर्क में रहें। तथा अपने बच्चों को रास्ते या स्कूल में किसी अनजान व्यक्ति के द्वारा कोई खाने पीने की चीज न लेने की सलाह दे।

एक समझदार अभिभावक होने के नाते हम सबका कर्तव्य है कि इस सामाजिक बुराई को मिटायें और अपने आस-पास के लोगों को भी इसके बारे में जागरूक करें, ताकि हमारे बच्चों को स्वस्थ माहौल मिल सके और उनमें स्वस्थ मानसिकता का विकास हो सके, तथा अपने बच्चों को अपना पूरा विश्वास, प्यार, समय और भावनात्मक सुरक्षा देनी चाहिए। आज अगर हम उनकी सुरक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाएंगे उनके प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से नहीं निभाएंगे तो कल वो हमारी जिम्मेदारी उठाने के लिए जिम्मेदार नागरिक नहीं बन सकेंगे।


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