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उपराष्ट्रपति ने कहा देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है



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उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने कार्यकाल के पूरा होने से एक दिन पहले देश में रह रहे मुसलमानों के लिए चिंता व्यक्त की है. अंसारी ने देश में "स्वीकार्यता के माहौल" पर ख़तरा बताते हुए कहा कि देश के मुसलमानों में बेचैनी का माहौल और असुरक्षा की भावना है। ज्ञात हो कि 80 वर्षीय उपराष्ट्रपति अंसारी का कार्यकाल आज गुरुवार (10 अगस्त) को समाप्त हो रहा है।

उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि नागरिकों की भारतीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। अंसारी ने इसे परेशान करने वाला विचार करार दिया. उन्होंने बताया कि असहनशीलता का मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट के सहयोगियों के समक्ष भी उठाया है।


जाने माने पत्रकार करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में जब हामिद अंसारी से पूछा गया कि क्या उन्होंने अपनी चिंताओं से प्रधानमंत्री मोदी को अवगत कराया है, तो उन्होंने इस सवाल का जवाब ‘हां’ कहकर  दिया। सरकार की प्रतिक्रिया पूछे जाने पर हामिद अंसारी ने कहा कि यूं तो हमेशा एक स्पष्टीकरण होता है और एक तर्क होता है। अब यह तय करने का मामला है कि आप स्पष्टीकरण और तर्क स्वीकार करते हैं या नहीं।


हामिद अंसारी ने भीड़ द्वारा लोगों को पीट-पीटकर मार डालने की घटनाओं, 'घर वापसी' एवं तर्कवादियों की हत्याओं पर भी चिंता जताई है। उन्होंने कहा यह भारतीय मूल्यों का बेहद कमजोर हो जाना, सामान्य तौर पर कानून लागू करा पाने में विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की योग्यता का चरमरा जाना और इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात किसी नागरिक की भारतीयता पर सवाल उठाया जाना है।

यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस बात से सहमत हैं कि मुस्लिम समुदाय में एक तरह की शंका है और जिस तरह के बयान उन लोगों के खिलाफ दिए जा रहे हैं, क्या उससे वे अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इस सवाल के जवाब में अंसारी ने कहा कि ‘हां, यह आकलन बिल्कुल सही है, मैं देश के अलग-अलग हिस्सों से सुनता हूं। और इस बारे में उत्तर भारत में ज्यादा सुनता हूं। उनमें बेचैनी का अहसास है और असुरक्षा की भावना घर कर रही है।

यह पूछे जाने पर कि क्या मुस्लिमों को ऐसा प्रतीत होने लगा है कि वे ‘अवांछित’ हैं? इस पर हामिद अंसारी ने कहा, ‘मैं इतनी दूर नहीं जाऊंगा, असुरक्षा की भावना है। अंसारी ने "तीन तलाक" के मुद्दे पर कहा कि यह एक सामाजिक विचलन है कोई धार्मिक जरूरत नहीं।अदालतों को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए, क्योंकि सुधार समुदाय के भीतर से ही होंगे। धार्मिक जरूरत बिल्कुल स्पष्ट है, इस बारे में कोई दो राय नहीं है। लेकिन पितृसत्ता, सामाजिक रीति-रिवाज इसमें घुसकर हालात को ऐसा बना चुके हैं जो अत्यंत अवांछित है।